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Digamber Jain Temple

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Digamber Jain Temple दिगमबर जैन मंदिर मेडतारोड कस्बे के सदर बाज़ार मे स्थित हे! यह रेलवे स्टेशन ओर बस स्टेशन से करीब आधा किलोमीटर दूर हे! यहा पर जो मूर्तिया हे उनके चित्र नीचे दिए हे!यहा पर बहुत ही अच्छी भगवान के बारे मे बताने वाली फ्रेम्स हे!  

Shree Raghunath Temple

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भगवान श्री रघुनाथ जी (श्री राम ) का मंदिर मेडतारोड कस्बे के सादो का धड़ा नामक स्थान पर हे! इससे हाल ही मे सन् २००७ मे वापस नया बनाया गया हे! इसमे भगवान श्री राम, लक्ष्मण ओर मेया सीता की मूर्ति विराजमान हे! और भी कई मूर्तिया विराजमान हे! जेसे भगवान शिवजी का शिवलिंग, साईबाबा, बाबा रामदेव आदि.! जिनके चित्र नीचे दिए गये हे! इसका निर्माण पुर्व सरपंच श्री रामचन्द्र जी साद की सहायता से किया गया! इसमे जो पैंटिंग की गयी हे! वो देखने लायक हे!

Shantinath Ji Temple

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श्री शान्तिनाथजी भगवान मंदिर वि. स. 1200 में श्रीपती ढढागौत तिलौरा इजाहण साहब का पोता विमलशाह ने माताजी की जमीन पर शान्तिनाथ जी का मन्दिर बनवाया जिसमें मुर्ति की प्रतिष्ठा करवा कर सेवा के लिए माताजी के पुजारियों को नियुक्त किया था। माताजी के मन्दिर से मात्र आधा किलो मीटर दूरी पर है। यह मन्दिर पाश्र्वनाथ जी के मन्दिर के दक्षिण दिशा के दरवाजे के ठीक सामने है। इस मन्दिर के रखरखाव का कार्य पाश्र्वनाथ मन्दिर ट्रस्ट करता है। इस मन्दिर में बहुत ही अच्छा बगीचा है।

Parasvnath Temple

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श्री पार्श्वनाथ भगवान मंदिर भगवान पार्श्वनाथ मंदिर 1/2 किलोमीटर मां ब्राह्मणी मंदिर से दूरी पर स्थित है। यह एक जैन तीर्थ है, जो मेड़ता रोड़ के मध्य में स्थित है। राजस्थान के मेड़ता रोड स्टेशन से 1 किमी कि दूरी पर है। यहाँ मंदिर में काले रंग में और पद्मासन मुद्रा में श्री भगवान पार्श्वनाथ जी की एक मूर्ति में है यह ऊंचाई में 105 कुछ सेंटीमीटर है। यह प्राचीन मूर्ति चमत्कार से समृद्ध है, यह मूर्ति बहुत ही समृद्ध है और सभी भावनाओं में देखने लिए ज्यादा आकर्षक है। यह मूर्ति रेत और पृथ्वी से बनी है। यह एक जैन तीर्थ राजस्थान मे अपना महत्व रखता है और 14 ई. मे "श्री जिनाप्रभासुरिसवराजी" अपने "विविध तिर्थ कल्प" यात्रा मे यहां आये थे, और इसे 68 तिर्थ से सम्मानित किया। श्री सेठ ढांढल जी को सपने मे यहां मुर्ति होने का सकेंत मिला था। यहां कई कठिनाइयों के बीच मंदिर का निर्माण किया गया। इसके बाद एक दूसरी औपचारिक स्थापना ई. 1181 में श्रद्धेय श्री धर्मागोसासुरिस्वारजी की उपस्